संपादकीय
किस जन्म में बच्चे नहीं हुए? माता-पिता के बगैर किसका अस्तित्व संभव है? सभी भगवान माँ के पेट से ही जन्मे थे! इस प्रकार माता-पिता और बच्चों का व्यवहार अनादि अनंत है। यह व्यवहार आदर्श किस प्रकार बने, इसके लिए सब दिन-रात प्रयत्न करते दिखते हैं। उसमें भी इस कलियुग में तो हर बात पर माता-पिता और बच्चों के बीच जो मतभेद देखने में आते हैं, उन्हें देखकर लोग घबरा जाते हैं। सत्युग में भी भगवान राम और लव-कुश का व्यवहार कैसा था? ऋषभदेव भगवान से अलग संप्रदाय चलाने वाले मरीचि भी तो थे। धृतराष्ट्र की ममता और दुर्योधन की स्वच्छंदता क्या अनजानी है? भगवान महावीर के समय में श्रेणिक राजा और पुत्र कोणिक मुगलों की याद नहीं दिलाते क्या? मुगल बादशाह जगप्रसिद्ध हुए, उनमें एक ओर बाबर था, जिसने हुमायूँ के जीवन की खातिर, अपना जीवन बदले में देने की अल्लाह से दुआ की थी, तब दूसरी ओर शाहजहाँ को कैद में डालकर औरंगजेब गद्दीशीन हुआ था। भगवान राम पिता के कारण ही बनवास गए थे। श्रवण ने माता-पिता को कावड़ में बिठाकर यात्रा करवाई थी (मुखपृष्ठ)। ऐसे राग-द्वेष के बीच झूलता हुआ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार प्रत्येक काल में होता है। वर्तमान में द्वेष का व्यवहार विशेष रूप से देखने में आता है।
ऐसे काल में समता में रहकर आदर्श व्यवहार के द्वारा मुक्त होने का रास्ता अक्रम विज्ञानी परम पूज्य दादा भगवान (दादाश्री) की वाणी के द्वारा यहाँ प्ररूपित हुआ है। आज के युवावर्ग का मानस, पूर्ण रूप से जानकर, उसे जीतने का रास्ता दिखाया है। विदेश में स्थित भारतीय माता-पिता और बच्चों की, दो देशों की भिन्न भिन्न संस्कृतियों के बीच, जीवन जीने की कठिन समस्या का सुंदर निराकरण प्रसंगानुसार बातचीत करके बताया है। ये सुझाव वरिष्ठ पाठकों को और युवावर्ग को बहुत-बहुत उपयोगी सिद्ध होंगे, एक आदर्श जीवन जीने के लिए।
प्रस्तुत पुस्तक दो विभागों में संकलित होकर प्रकाशित हो रही है।
1).. पूर्वार्ध : माता-पिता का बच्चों के प्रति व्यवहार
2..) उतरार्ध : बच्चों का माता-पिता के प्रति व्यवहार
पूर्वार्ध में परम पूज्य दादाश्री के कईं माता-पिता के साथ हुए सत्संगों का संकलन है। माता-पिता की कईं मनोव्यग्रताएँ परम पूज्य दादाश्री के समक्ष अनेक बार प्रदर्शित हुई थीं। जिनके सटीक हल दादाश्री ने दिए हैं। जिनमें माता-पिता को व्यवहारिक समस्याओं के समाधान मिलते हैं। उनके अपने व्यक्तिगत जीवन को सुधारने की चाबियाँ मिलती हैं। उसके अलावा बच्चों के साथ दैनिक जीवन में आनेवाली मुश्किलों के अनेक समाधान प्राप्त होते हैं, जिससे संसार व्यवहार सुखमय रूप से परिपूर्ण हो। माता-पिता और बच्चों के बीच जो पारस्परिक संबंध हैं, तात्विक दृष्टि से जो जो वास्तविकताएँ हैं, वे भी ज्ञानीपुरुष समझाते हैं; जिससे मोक्ष मार्ग पर आगे बढऩे में माता-पिता की मूर्छा दूर हो जाए और जागृति आ जाए।
जबकि उत्तरार्ध में परम पूज्य दादाश्री के बच्चों और युवा लड़के-लड़कियों के साथ हुए सत्संगों का संकलन है, जिसमें बच्चों ने अपने जीवन की व्यक्तिगत मनोव्यग्रताओं के समाधान प्राप्त किए हैं। माता-पिता के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए, वह समझ प्राप्त होती है। शादी करने संबंधी ऐसी उत्तम समझ प्राप्त होती है कि युवा पीढ़ी अपने जीवन में सच्ची बात समझकर, व्यवहार में पूर्णरूप से निराकरण ला सके। बच्चे अपने माता-पिता की सेवा का माहात्म्य और परिणाम समझें।
माता-पिता की समस्याएँ जैसे कि बच्चों के लिए इतना कुछ किया, फिर भी बच्चे अवज्ञा करते हैं, इसकी क्या वजह है? बच्चे बड़े होकर ऐसे संस्कारी होंगे, वैसे होंगे वगैरह वगैरह सपने जब नष्ट होते देखते हैं, तब जिस आघात का अनुभव होता है, उसका समाधान कैसे करें? कुछ बच्चे तो माता-पिता के परिणित जीवन का सुख (!) देखकर शादी से इन्कार कर देते हैं तब क्या करें? माता-पिता संस्कारों का सिंचन कैसे करें? खुद उसका ज्ञान कहाँ से प्राप्त करें? कैसे प्राप्त करें? बिगड़े बच्चों को किस प्रकार सुधारें? बातों-बातों में माता-पिता और बच्चों के बीच होता टकराव कैसे टले? बच्चों को माता-पिता बॉसीज़म करते लगते हैं और माता-पिता को बच्चे पथभ्रष्ट होते लगते हैं; अब इसका रास्ता क्या? बच्चों को अच्छा सिखाने के लिए कुछ कहना पड़े और बच्चे उसे किटकिट समझकर सामने तर्क करें तब क्या करें? छोटे बच्चे और बड़े बच्चों के साथ किस प्रकार अलग-अलग व्यवहार करें?
घर की भिन्न-भिन्न प्रकृतियों का सच्चा माली किस प्रकार बनें? उसका लाभ किस समझ से उठा पाएँ? कोई लोभी, तो कोई फिजूलखर्च, कोई चोर, तो कोई औलिया (सन्त-स्वभावी), घर के बच्चों की ऐसी भिन्न भिन्न प्रकृतियाँ हों तो, घर के वरिष्ठ क्या समझें और क्या करें?
पिता को शराब, बीड़ी का व्यसन हो तो उससे किस प्रकार छुटकारा हो, जिससे बच्चों को उनके बुरे असर से बचाया जा सकें?
बच्चे दिन और रात देर तक टी.वी., सिनेमा देखते रहें तो, उससे उन्हें किस प्रकार बचाए? नयी पीढ़ी (जनरेशन) की कौन-सी अच्छी बातों को ध्यान में रखकर उनका लाभ कैसे उठाए? कल की कषायपूर्ण और वर्तमान की भोगवादी पीढिय़ों के अंतर को किस प्रकार दूर करें? एक ओर आज की पीढ़ी का हेल्दी माईन्ड (तंदुरुस्त दिमाग़) देखकर गर्दन झुक जाए, ऐसा लगता है और दूसरी ओर विषयांध दिखते हैं, वहाँ क्या हो सकता है?
देर से उठनेवाले बच्चों को किस प्रकार सुधारें? पढऩे में कमज़ोर बच्चों को किस प्रकार सुधारें? उन्हें पढऩे के लिए किस प्रकार प्रोत्साहित करें? बच्चों के साथ व्यवहार करते समय संबंध टूट जाएँ तो किस प्रकार उन्हें काउन्टर पुली के द्वारा जोड़ें?
बच्चे भीतर ही भीतर लड़ें, तब तटस्थ रहकर न्याय किस प्रकार करें? बच्चे रूठें तब क्या करें? बच्चों का क्रोध शांत करने के लिए क्या करें? बच्चों को क्या गलती महसूस करवा सकते हैं? क्या बच्चों को डाँटना ज़रूरी है? डाँटें या महसूस करवाएँ, किस प्रकार से? बच्चों को डाँटें तो कौन सा कर्म बंधता है? उनको दु:ख हो तो क्या उपाय है? बच्चों को पीटना चाहिए? पीट दिया तो क्या उपाय है? काँच के समान बालमानस को किस प्रकार से हैण्डल करें? माता-पिता कठोर परिश्रम करके कमाई करें और बच्चे फिजूल खर्च करते हों तो क्या एडजस्टमेन्ट (समाधान) लें? बच्चों को स्वतंत्रता देनी चाहिए? अगर देनी चाहिए तो किस हद तक? लड़का शराबी हो तो क्या कदम उठाएँ? बहुत गालियाँ दे तो क्या करें? मोक्ष का ध्येय रखकर अध्यात्म एवँ माता-पिता और बच्चों के व्यवहार का किस प्रकार समन्वय करें? माता-पिता लड़के से अलग हों तो क्या करना चाहिए?
लड़कियाँ रात को देर से आएँ तो? कुसंगती हो गई हो तब क्या करें? लड़की ने विजातीय से शादी की हो तो क्या करें? लड़की पर शंका रहा करती हो तो क्या करना चाहिए?
विल-वसीयतनामा करना चाहिए? कैसा करना चाहिए? किसे कितना देना चाहिए? मरने से पहले दें या बाद में? लड़के पैसा माँगे तब क्या करें? घरजवाई रखने चाहिए या नहीं?
बच्चों पर कितना मोह रखें? लगाव, ममता का क्या रहस्य है? ये कितने फायदेमंद हैं? गुरु (पत्नी) आते ही बेटा बदल जाए तो क्या करें?
जिसे बच्चे न हों उनके कर्म कैसे हैं? बच्चे नहीं हों तो, श्राद्ध कर के मुक्ति कौन दिलाएगा? छोटी उम्र में बच्चों की मृत्यु हो तो माता-पिता किस प्रकार सहन करें? उनके लिए क्या करें? जब दादाश्री के बच्चे मर गए तब उन्होंने क्या किया था? रिलेशन (संबंध) टूट रहे हों तो किस तरह जोड़ें? ज्ञानी किस ज्ञान से भव सागर को पार करने का रास्ता दिखाते हैं?
कली को खिलाने की कला ज्ञानी की कैसी होती है, वह यहाँ देखने को मिलती है। यहाँ पर दो साल से लेकर बारह साल के बच्चों को खिलते देखते हैं, तब बहुत-कुछ सीखने को मिलता है, प्रेम, समता और आत्मीयता के रंग से।
बच्चों को किस प्रकार पढ़ाना-लिखाना चाहिए और गढऩा चाहिए?
बच्चे शादी करने योग्य हों, तब बड़ा प्रश्न आकर खड़ा होता है, पात्र कौन हो और किस प्रकार पसंद करें? दादाश्री लड़के और लड़कियों को बहुत ही सुन्दर मार्गदर्शन देते हैं, जिससे माता-पिता और बच्चों की सहमति से पात्र का चुनाव हो।
लड़कियों को ससुराल में सबको प्रेम से वश में करने की सुन्दर चाबियाँ दादाश्री ने प्रदान की हैं। माता-पिता की सेवा, विनय से उनके आशीष प्राप्त करने का महत्व क्या है और वह कैसे प्राप्त हो?
अंत में, वृद्धों की व्यथा और उसे हल करने के लिए वृद्धाश्रम की आवश्यकता और आध्यात्मिक जीवन कैसे जीएँ, इसका सुन्दर मार्गदर्शन यहाँ संकलित हुआ है; जिसे पढ़कर समझने से माता-पिता और बच्चों दोनों का व्यवहार आदर्श होगा।
–डॉ. नीरु बहन अमीन